यादों की मद्धम आँच में
ज़हनी जज़्बात पिघलते जा रहे हैं
मेरे दिल में आ रहे हैं
ख़ुद काग़ज़ पर उतरते जा रहे हैं
अकेला मैं चीज़ क्या हूँ? कुछ नहीं!
तेरा साथ पाकर पूरा हो जाता हूँ
इस ज़िन्दगी को समझने लगता हूँ
तेरे एतबार से नया हासिल पाता हूँ
तेरे साथ बीते हर सुबह हर शाम
मैं तेरे क़रीब आ रहा हूँ
नग़मए-नाम तेरा गुनगुना रहा हूँ
दर्मियाँ फ़ासले मिटा रहा हूँ
इरादा कर लो मेरे साथ तुम रहोगे
हर ख़ाब पूरा करूँगा जो देखोगे
सुनो धड़कन, इस दिल की सदा तुम
क्यों यक़ीं है मुझे अपना कहोगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
5 replies on “यादों की मद्धम आँच में”
Dost. You really have a great thought process. I hve become fan of urs. Keep up the gud work !!
सुनो धड़कन, इस दिल की सदा तुम
क्यों यक़ीं है मुझे अपना कहोगे
“wah wah , iss kadar “ykeen” ka ykeen dekh kr accha lgaa”
Thanks, Rahul. Your Weblog is Very Good.
@ Seema Ji, Thanks!
नग़मए-नाम तेरा गुनगुना रहा हूँ
दर्मियाँ फ़ासले मिटा रहा हूँ
इरादा कर लो मेरे साथ तुम रहोगे
हर ख़ाब पूरा करूँगा जो देखोगे
सुनो धड़कन, इस दिल की सदा तुम
क्यों यक़ीं है मुझे अपना कहोगे
बहुत खूब….पर मेरी उम्मीदे आपसे इससे भी कही ज्यादा है…..
अकेला मैं चीज़ क्या हूँ? कुछ नहीं!
तेरा साथ पाकर पूरा हो जाता हूँ
इस ज़िन्दगी को समझने लगता हूँ
तेरे एतबार से नया हासिल पाता हूँ
Beautiful! I am tempted to ‘plagiarize’ these words !
Aapne mere dil ki baat verbalize kar dee !
Don’t worry I won’t.