जाने दो जाने दो यह लम्हा गुज़र जाने दो
न रोको इसे न सँभालो, बह जाने दो…
वक़्त के क़तरे बहते रहते हैं
हम भी तेरे नशेमन में रहते हैं
आवाज़ देना हमें हम लौट आयेंगे
जायें भी तो और कहाँ जायेंगे
जाने दो जाने दो यह लम्हा गुज़र जाने दो
न रोको इसे न सँभालो, बह जाने दो…
तुमने मुझे अजनबी कह दिया है
इक शीशे के मर्तबाँ में बंद कर दिया है
अब हम साँस कैसे ले पायेंगे
तेरे नाम के साथ दफ़्न हो जायेंगे
जाने दो जाने दो यह लम्हा गुज़र जाने दो…
मर्तबाँ का अर्थ jampot या jar होता है।
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १७ अप्रैल २००३