रोज़, यह बुझता नहीं
शब, यह गलती नहीं
बिन तेरे सब कुछ थम के रह गया है
*दिन में रोशनी होती है,
इसलिए ‘यह बुझता नहीं’
रात काली मिट्टी जैसी होती है,
इसलिए ‘यह गलती नहीं’
तुम्हारे बिना ऐसा लगता है
यह सिलसिला यूँ ही थमा रहेगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १३/जून/२००३
*लेखन वर्ष: १५/सितम्बर/२००७