यह सोज़गाह1 है कि मेरा दिल है
मुझको जलाने वाला मेरा क़ातिल है
जिसे देखकर उसे रश्क़2 आता है
वह कोई और नहीं माहे-क़ामिल3 है
जिसने मुझको कहा सबसे अच्छा
वह कोई पारसा4 है या बातिल5 है?
तुम जाने किस बात पर रूठे मुझसे
लहू में ग़म हर क़तरा शामिल है
मेरा यह दिल आ गया तुम पर
तू मेरी पुरनम6 आँखों का हासिल है
मुझसे रूठकर दुनिया बसा ली
मेरा यार मुझसे ज़ियादा क़ाबिल है
वह उसके लिए मेरा मुक़ाबिल7 था
आज वह ख़ुद उसका मुक़ाबिल है
वह ग़ज़ल में अस्लूब8 ढूँढ़ता है
‘नज़र’ वाइज़9 भी कितना जाहिल10 है
शब्दार्थ:
1. दिल की जलन का स्थान 2. ईर्ष्या 3.पूरणमासी का चाँद 4. महात्मा 5. झूठा, जिसकी बात की कोई मान्यता न हो 6. गीली, भीगी 7. शत्रु 8. नियम, शैली 9. बुद्धिजीवी 10. अनपढ़ की तरह बर्ताब करने वाला
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
8 replies on “यह सोज़गाह है कि मेरा दिल है”
वाह !!! लाजवाब…..हरेक शेर पर मुंह से वाह निकालने लायक …..बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी आपने……पढ़कर आनंद आ गया.बहुत बहुत बधाई.
जिसने मुझको कहा सबसे अच्छा
वह कोई पारसा है या बातिल है?
और फिर
वह ग़ज़ल में अस्लूब ढूँढ़ता है
‘नज़र’वाइज़ भी कितना जाहिल है
अस्तित्ववाद और प्रगतिशीलता का ऐसा गहरा मेल मुश्किल है. बहुत ख़ूब. बधाई.
KYA BAAT HAI JANAB,AAPKI KUCHH BEHAD PRABHAVIT KARNE WALI GAZALON ME SE EK… BAHAD UMDA HAI WAJN BHI MUKAMMAL HAI… BEHAD KHUBSURATI SE AAPNE AAPNA HAK AADA KIYA HAI … HAR SHE’R ME JAISE JAAN DAL DI HAI AAPNE… DHERO BADHAI KUBUL KAREN….
ARSH
बहुत ही सुंदर,मन मोह लिया आप की इस कविता ने.
धन्यवाद
वह ग़ज़ल में अस्लूब ढूँढ़ता है
‘नज़र’ वाइज़ भी कितना जाहिल है
क्या ही आला ग़ज़ल पढ़ गए नज़र भाई। भा गई और छा गई दिल पर। वाह वाह!
Kaffi sanjida likhte hain aap. sunder. badhai
वाह जी वाह वाकई बहुत खूबसूरत है अच्छा लिखा है आपने
आप सभी का पूरे दिल से धन्यवाद!