ज़ख़्मे-जिगर भर आये, कहाँ हो तुम?
बदरा सावन बुलाये, कहाँ हो तुम?
अपने हश्र तक पहुँचा ‘नज़र’ आज
मौत यह मुझको सताये, कहाँ हो तुम?
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
ज़ख़्मे-जिगर भर आये, कहाँ हो तुम?
बदरा सावन बुलाये, कहाँ हो तुम?
अपने हश्र तक पहुँचा ‘नज़र’ आज
मौत यह मुझको सताये, कहाँ हो तुम?
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३