ज़िन्दगी बहुत दूर तक नहीं जायेगी
जाकर मेरी क़ब्र तक लौट आयेगी
अफ़साने गीले पत्तों की तरह धुलेंगे
ये जिस्म के रग-रग से निकल आयेगी
रुकेगी जब बदन में नब्ज़ों की हलचल
पल-पल मुझे सिर्फ़ तू नज़र आयेगी
रात का दामन थामे-से थमता नहीं आज
इन लफ़्ज़ों में सुबह कहाँ ठहर पायेगी
ज़िन्दगी बहुत दूर तक नहीं जायेगी
जाकर मेरे दरवाज़े तक लौट आयेगी
ज़हर पी लूँ मगर मुझे मौत क्या देगी
तेरी रूह से मेरी रूह कैसे मिल पायेगी
मिले अगर हम कभी तो एक हो जायेंगे
फिर ये फासले दर्मियाँ न बन पायेंगे
ख़ुशी तुझे इक रोज़ ज़रूर ढूँढ लायेगी
कभी न कभी तू मेरी ज़िन्दगी में आयेगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२
One reply on “ज़िन्दगी बहुत दूर तक नहीं जायेगी”
मिले अगर हम कभी तो एक हो जायेंगे
फिर ये फासले दर्मियाँ न बन पायेंगे
ख़ुशी तुझे इक रोज़ ज़रूर ढूँढ लायेगी
कभी न कभी तू मेरी ज़िन्दगी में आयेगी
ye akhari lines behad sundat bani hai.badhai.