सूखे हुए तिनकों को आशियाँ कहिए
जो सबपे खुला हो उसको निहाँ कहिए
ज़ुल्म को अपने इम्तिहाँ कहिए
जो बार-बार मिले उसको जाँ कहिए
मरज़ी आपकी मुझको बेवफ़ा कहिए
यह न कहिए तो और क्या कहिए
जो याद आता हो रह-रहके आपको
उसको ज़हर बुझाया पैकाँ कहिए
शिकन सिलवटें सब आँखों में रखिए
फिर ख़ुदा से फ़रियादो-फ़ुग़ाँ कहिए
जिस पर हर कोई सजदा बिछाये
उसको महज़ संगे-आस्ताँ कहिए
हर वो बात जो कि सच है सही है
उसे कहने वाले को बदज़ुबाँ कहिए
न मानिए किसी की जो जी में आये करिए
दूसरों को ज़मीं ख़ुद को आस्माँ कहिए
रंगारंग महफ़िलों में रोज़ जाइए
बिन बुलाये हुए को मेहमाँ कहिए
पूछिए की मोहब्बत क्या है कहाँ है
किसी दोस्त की वफ़ा को बेईमाँ कहिए
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
One reply on “सूखे हुए तिनकों को आशियाँ कहिए”
हर वो बात जो कि सच है सही है
उसे कहने वाले को बदज़ुबाँ कहिए
न मानिए किसी की जो जी में आये करिए
दूसरों को ज़मीं ख़ुद को आस्माँ कहिए
रंगारंग महफ़िलों में रोज़ जाइए
बिन बुलाये हुए को मेहमाँ कहिए
gazal to umda hai hi,ye sher lajawab.