जब साँसों में समायी नयी सुगन्ध
जब मिले पत्तों को लाल-हरे रंग
जब आया जीवन में मेरे बसंत
जब तन-मन में खिली नयी उमंग
जब सूखी शाखों पर खिले फूल
वह है मेरे जीवन की पहली धूम…
जब मैंने सीखा जीने का सही ढंग
जब मन में उठी पहली नयी तरंग
जब किरणों को देखा सुबह के संग
जब जीवन की साधना हुई भंग
जब खिल उठा मेरा रोम-रोम
वह है मेरे जीवन की पहली धूम…
जब करने लगी बहकी हवा तंग
जब हो गया आये पतझड़ का अंत
जब खिल उठा मेरा अंग-अंग
जब डूबा उसमें जिसकी सीमा अनंत
जब बारिश के बाद खिली भीनी धूप
वह है मेरे जीवन की पहली धूम…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९