वह बारिश की छीटें
वह बारिश की बूँदें
फिर याद आने लगीं,
ख़ामोशी तेरी आँखों की
हलचल तेरे होंटों की
फिर से बुलाने लगी…
दर्दे-दिल फिर गुनाहगार हो
उसका हमें फिर दीदार हो
यह ख़िज़ाँ उतर जाये
देखें तुम्हें दिल बेक़रार हो
वह बारिश की छीटें
वह बारिश की बूँदें
फिर याद आने लगीं…
यह तूफ़ाँ दिल से गुज़र जाने दो
हमें लौटकर फिर आने दो
यह शाम ठहर जाये
कुछ यूँ हमें शाम जलाने दो
वह बारिश की छीटें
वह बारिश की बूँदें
फिर याद आने लगीं…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १५ अप्रैल २००३