मैं ज़हर का असर ढूँढ़ता फिरा
वह शामो-सहर ढूँढ़ता फिरा
जिस बाज़ार में ग़म बिकते हों
उसे दिनो-दोपहर ढूँढ़ता फिरा
आस एक बुझी-बुझी है दिल में
मैं हर गली शरर ढूँढ़ता फिरा
कोई खोदे वह यहीं दफ़्न है
‘नज़र’ जिसे बेख़बर ढूँढ़ता फिरा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३