दिल ख़ुद ख़ला है उसमें दूसरी ख़ला क्या होगी
मैंने सय्यारों की तरह भटककर देखा है इसमें
दूर-दूर तक इसमें तेरे दिए ज़ख़्म ज़िन्दा हैं…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
दिल ख़ुद ख़ला है उसमें दूसरी ख़ला क्या होगी
मैंने सय्यारों की तरह भटककर देखा है इसमें
दूर-दूर तक इसमें तेरे दिए ज़ख़्म ज़िन्दा हैं…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३