सहर-ब-सहर1 मैं ढूँढ़ता रहा शुआएँ2
कहाँ छिप गयीं नूर-सी रोशन निगाहें
न कोई घर रहा मेरा न कोई ठिकाना
मेरी मंज़िल तो बन गयीं अब ये राहें
है जो दर्द सो अब तन्हाई से है मुझे
असरकार हों, कुछ काम आयें दुआएँ3
न दोस्त न नासेह4 न चारागर5 न वाइज़6
कोई भी नहीं लेता अपने सर ये बलाएँ
जो जाते हैं अपना दामन छुड़ा के ‘नज़र’
कह दो कि जाते हैं तो सब कुछ ले जाएँ
शब्दार्थ:
1. एक सुबह से अगली सुबह तक, 2. किरण, 3. प्रार्थनाएँ, 4. नसीहत करने वाला, 5. इलाज करने वाला, 6. बुद्धिमान
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४