अजब-सी टीस लगी है
दस दूनी बीस लगी है,
आँखों में आँच भरी है
उन्नीस की बीस लगी है
दिल में दर्द उगते हैं
साँसें ठण्डी-ठण्डी हैं,
मेरा हर ख़ाब टूटा है
ख़ाहिश भीख लगी है
डालों से फूल गिर गये
ख़ुशबू के मौसम गये,
आइनों ने धोखा दिया
ज़िन्दा तस्वीर लगी है
रोशनी का दरिया बहे
मुझे कोई अपना कहे,
वह ख़लिश बुझाये तो
ज़िंदगी मरीज़ लगी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३