ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ, तुम चले आओ
दिल बेक़रार है बहुत
तुम चले आओ, तुम चले आओ
मौसम बड़ा गुलाबी है
गुलाबी गुल हैं शाख़ों पर
अब और न तरसाओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
दिल धड़क रहा है
धड़क रही है नब्ज़-नब्ज़
धड़कनें और न बढ़ाओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
बरखा बहार आयी है
बरस रही है धरा पर
अब और न तड़पाओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
आँचल उड़ाकर अपना
चेहरा दिखा दो
न चुराओ नज़र, न चुराओ
ख़ुशबू बिछायी है राहों में
तुम चले आओ…
दिल बेक़रार है बहुत
तुम चले आओ…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
4 replies on “ख़ुशबू बिछायी है राहों में”
अहा….!अति सुंदर,शाश्वत कविता है आपकी.. आपकी रचनाओं में अनुभूति की तीव्रता है जो आपकी हर रचना को सार्थक बनाती है… अविराम आगे बढ़ते रहिये सफलता कदम चूमेगी…आपकी हर रचना को नियमित पढने का प्रयास करूंगा…
बडी ही सुंदर रचना।
सहर्ष आप दोनों का अभिनन्दन!
bahut sunder, hum aap ka abhinanadan karate hai