जो मुझको जानते हैं ज़रा कम जानते हैं
जो नहीं जानते हैं ज़रा ज़्यादा जानते हैं
जो ढीठ बनके बैठा हुआ है मेरी जानिब
वो नहीं जानता है कि बहुत ढीठ है ‘विनय’
यह एक दिन न ढलेगा, ढलेंगे लाखों सूरज
देखता हूँ कब तक बैठोगे फेरके अपनी सूरत
बस शिकन में छुपा लोगे तुम अपनी चाहत
मगर कैसे छुपाओगे इक तड़प की हालत
ख़ुद से थोड़ा मुतमइन हूँ और तुझसे भी
जाने क्या बात है तुम कुछ कहते नहीं
देखता हूँ शर्त तू जीतेगी या मैं जीतूँगा
न हारना तेरी फ़ितरत में होगा न मैं हारूँगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
5 replies on “जो मुझको जानते हैं”
बढिया रचना है।बधाई।
देखता हूँ शर्त तू जीतेगी या मैं जीतूँगा
न हारना तेरी फ़ितरत में होगा न मैं हारूँगा
इतनी मुद्दत के बाद मिली आपसे कोई प्रतिक्रिया! ख़ैर मिली तो सही! कहिए और क्या हाल हैं?
विनय जी, आपकी रचना बडी अच्छी लगी।
जो आपको जानते हैं ‘बहोत बहेतर कवि से पहचानते है।
ख़ुशामदीद रज़िया जी!
बस शिकन में छुपा लोगे तुम अपनी चाहत
मगर कैसे छुपाओगे इक तड़प की हालत
nazar sahab bahot khub ,shandar hai ye rachana…..likhte rahe…….
regards
“arsh”