शबो-रोज़ सब गुज़र गये शाम नहीं गुज़रती
मेरी गली से होकर सबा खुले’आम नहीं गुज़रती
बादलों की टुकड़ियाँ हवा पर सवार थीं अगर
क्यों फिर टूटती बारिश सरे’आम नहीं गुज़रती
गुनगुनायी धूप पत्तियाँ हर शाख़ खिल आयीं
महकते फूलों को मुरझाके सदाए-अंजाम नहीं गुज़रती
वह कहाँ है और क्यों लौटकर नहीं आता वापस
क्यों शीशाए-दिल की चाँदनी सरे’बाम नहीं गुज़रती
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४