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मेरी ग़ज़ल

जी उठा है क्यों

आ फिर जमा करें क़तरा-क़तरा वक़्त का
सूख न जाये कोई भी गुल दरख़्त का

अश्को-आँच दो मेहमाँ उतर आये आँख में
घर जला दिया है किसी बद्-बख़्त का

एक ख़ला निहाँ है मेरे सीने में दिल कहाँ है
कैसे मिलेगा कोई निशाँ मुहब्बत का

हम  मशहूर  कम  बदनाम  ज़्यादा  रहे
कौन  निबाहेगा  साथ  इस  बे-रब्त  का

जी उठा है क्यों नफ़स का तार-तार ‘नज़र’
क्या पिघल गया है दिल उस एक शख़्स का


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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