आ फिर जमा करें क़तरा-क़तरा वक़्त का
सूख न जाये कोई भी गुल दरख़्त का
अश्को-आँच दो मेहमाँ उतर आये आँख में
घर जला दिया है किसी बद्-बख़्त का
एक ख़ला निहाँ है मेरे सीने में दिल कहाँ है
कैसे मिलेगा कोई निशाँ मुहब्बत का
हम मशहूर कम बदनाम ज़्यादा रहे
कौन निबाहेगा साथ इस बे-रब्त का
जी उठा है क्यों नफ़स का तार-तार ‘नज़र’
क्या पिघल गया है दिल उस एक शख़्स का
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४