छिटककर मेरे दामन पे आ गया दाग़ मोहब्बत का
देखिए असर क्या दिखाए असर मोहब्बत का
वफ़ादारी से निभायिए वफ़ा की सब क़समें हुज़ूर
रंग जो इक बार चढ़े फिर न उतरे न मोहब्बत का
मेरे ख़ूने-जिगर को निस्बत न दे दस्ते-हिनाई से
आँसुओं के साथ बहता है तो सुबूत है मोहब्बत का
‘नज़र’ के तन-बदन में सुलग रही है इश्क़ की आग
तेरी आमद से निखरेगा रंग और मोहब्बत का
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३