तेरे बिना
ज़िन्दगी से जीने का वादा सनम
हमने किया तो न था
तेरे बिना सनम, तेरे बिना सनम
फ़ासले चार-चार क़दमों के रहे
दूरियाँ भी कुछ दूर थीं
पास तो हम-तुम रहे मगर फिर भी
नज़दीक़ियों की आस थी
दिल की हसरतों को छुपाते रहे
जब-जब मिले तुम शर्माते रहे
कह देते हम दिल की बात को
रोक लेते आज की रात को
मगर क्या करें सनम,
तुम ही चले गये…
मिट जाते हम मर जाते हम
एक बार सनम कह देते तुम
मगर क्या करें सनम
तुम ही उजली-सी ज़िन्दगी को
अँधेरों में छोड़ कर चले गये…
मुड़कर भी कभी तुमने देखा नहीं
हम तो सनम आज भी रहते वहीं
तेरे बिना सनम, तेरे बिना सनम
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२