ऐ बादलों सुनो ज़रा
जा रहे हो तुम किधर
संदेशा मेरा भी लेते जाना
मेरे पिया के घर…
ऐ बादलों सुनों ज़रा…
गुज़रा है कैसे हर लम्हा
मेरे उनको बताना
जीती हूँ कैसे रहती हूँ कैसे
मेरे उनको जताना
मिटती है ख़ाहिश बनती है ख़ाहिश
दिल में जलते हैं दिए
कैसे भरेंगे वो सारे ज़ख़्म
जो उन्होंने मुझे हैं दिये…
ऐ बादलों सुनो ज़रा
जा रहे हो तुम किधर
संदेशा मेरा भी लेते जाना
मेरे पिया के घर…
थोड़ा-थोड़ा गल रहा है कहीं-कहीं
बर्फ़ों का मौसम
धीरे-धीरे गुज़र रहा है बाग़ों से
पतझड़ का मौसम
आ जायें वह उनसे कहना
ख़्याल कर लें वह भी मेरा
न जाने कब थम जाये
न जाने कब रुक जायें
नब्ज़ों की घड़ी, ये धड़कनें मेरी…
ऐ बादलों सुनो ज़रा
जा रहे हो तुम किधर
संदेशा मेरा भी लेते जाना
मेरे पिया के घर…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२