यह शाम क्यों ग़मगीन है
आँख का पानी नमकीन है
ज़िन्दगी में सवेरा चाहिए
रात एक बंजर ज़मीन है
तेरी यादों के शामियाने बिछाये हैं
रात के इस छोर पे
तुम आये हो हमसे मिलने
ज़िन्दगी के किस मोड़ पे
छोटे-छोटे ख़ाब हैं मेरे
जिनको पलकों पर रख लेता हूँ
याद आती है जब तुम्हारी
किताबों जैसे पढ़ लेता हूँ
वक़्त के क़तरे-क़तरे से
मैंने यादों के जाम भरे हैं
कैसे भूल जाऊँ उनको
जो इल्ज़ाम तुमने दिये हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२