हम ख़ाब से डूबे
और ख़ाब से तैरे
अब जायें कहाँ
किस जगह ठहरें
पलकें बिछा दीं
ये शाम बुझा दो
जी भर देख लूँ
हुस्न दिखला दो
अब जायें कहाँ
किस जगह ठहरें
लो भूलकर आये
हम सारा ज़माना
इक आशियाँ बनायें
इक ठौर-ठिकाना
अब जायें कहाँ
किस जगह ठहरें
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२