हाथों की लकीरों में बनती है जिनकी तस्वीर
उनके ही दिल से जोड़ी है दिल की ज़ंजीर
हाथों पर लिखकर उनके नाम जब चूमे
तो उनके एहसासों की गहराइयों में हम डूबे
ख़ाबों में चलकर इक ऐसी सरहद पर रुके
वो फ़ासले कि सिर्फ़ उनके साये से हम मिले
यह सफ़र है एक नये दिन की शुरुआत
इसमें चलते रहने से ही बनती है बात
हर सफ़र की तरह इस सफ़र में भी
कुछ अन्जाने मिलेंगे जो कभी अपने बनेंगे
हमको यक़ीं है इस सफ़र में वो भी मिलेंगे
जिनको है देखा हमने हाथों की लकीरों में
हाथों की लकीरों में बनती है जिनकी तस्वीर
उनके ही दिल से जोड़ी है दिल की ज़ंजीर
हर मंज़िल हर मोड़ पर इक नया इन्तज़ार
चलते रहे निभाते रहे हम अपना किरदार
थोड़ी-सी मुश्किलें मिली थोड़ा-सा जज़्बा मिला
हमें हर क़दम पर इक नया रास्ता मिला
ऐ दिल चल उस राह जिस पर मिले वह यार
मौसम सुहाना हो और शाख़ें गुले-गुल्ज़ार
हाथों की लकीरों में बनती है जिनकी तस्वीर
उनके ही दिल से जोड़ी है दिल की ज़ंजीर
हाथों पर लिखकर उनके नाम जब चूमे
तो उनके एहसासों की गहराइयों में हम डूबे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२