आशाओं को मेरी टूटने न दे
आ जा यार तू,
सभी बन्धन तोड़ के…
तेरे वास्ते
यह सदियों से लम्बे रास्ते
मैं तय करता आया हूँ
आज यह क़दम मेरे
जाने क्यों थकने लगे
आ जा यार तू,
सभी बन्धन तोड़के…
शामें गुज़र गयीं
रातें बालिश्तों में नाप लीं
कोई वादा तोड़ के
जो मैंने किया हो गुनाह
वह गुनाह माफ़ कर दे
आशाओं को मेरी टूटने न दे
आ जा यार तू,
सभी बन्धन तोड़ के…
तस्व्वुर में जो तेरी तस्वीर है
उस पर धुँधलियाँ छाने लगीं
जाने किसके दिल में
धड़कने मेरी,
अपना आशियाँ बनाने लगीं
कोई तुझे मेरी यादों से ग़ुमा दे
इसके पहले तू मुझे
अपना बना ले…
आ जा यार तू,
सभी बन्धन तोड़ के…
तेरी मोहब्बत में यह रात-दिन
इक सज़ा-से लगने लगे
और हम टूटकर
इस जुदाई में बिखरने लगे
कि अब तू हमें
अपनी वफ़ाओं से बाँध ले
आशाओं को मेरी टूटने न दे
आ जा यार तू,
सभी बन्धन तोड़ के…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२