तेरे बिना जीना,
जैसे ज़हर पीना…
क़तरा-क़तरा मिलता है
जिस्म इसे ऐसे ही निगलता है
कोई अफ़साना दोहराए
कोई चाहे तेरे साथ जीना…
तेरे बिना जीना,
जैसे ज़हर पीना…
दर्द से दिल चिटक रहा है
साँस का कोई टुकड़ा अटक रहा है
वक़्त के काँटे कोई कैसे चुने
बुने तो कैसे बुने,
कोई नया अफ़साना…
तेरे बिना जीना,
जैसे ज़हर पीना…
कोई दिया जला है कहीं
कोई किसी को मिला है कहीं
मुझे तो मिला नहीं
फिर किसके सहारे जीना…
तेरे बिना जीना,
जैसे ज़हर पीना…
रेशम-सी यादें तुम्हारी
यह रातें सौगातें तुम्हारी
क्या कभी तुमने कोई ख़ाब खोया है
हाँ मेरे साथ ही ऐसा हुआ है
रास न आये मुझे ऐसा जीना
तेरे बिना जीना,
जैसे ज़हर पीना…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२