अब तो लौट आ
सुन ले दिल की सदा
अब तो लौट आ
सुन ले दिल की ज़रा
मेघा भी छाये हैं
आब यह बरसाये हैं
तू रेगिस्तानों की
मरीचिका बनकर
क्यों मुझे सताये है
परछाइयों को
आइनों में रख दे
आइने से बाहर आ
अब तो लौट आ
सुन ले दिल की वफ़ा
अब तो लौट आ
सुन ले दिल की रज़ा
वादियों में हरियालियाँ हैं
दिलों में ख़ुशहालियाँ हैं
मुझको क्यों रिझाती
तेरे कानों की
दोनों बालियाँ यह
खा़बों को
माज़ी में छोड़ दे
माज़ी के बाहर आ
अब तो लौट आ
अब तो लौट आ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२