ऐसा मुझको क्यों हो गया
मुझको तुमसे प्यार हो गया
बहाने अजब बनाने लगा
तेरे क़रीब आने लगा
ऐसा मुझको क्यों हो गया
मुझको तुमसे प्यार हो गया
मैं जिसको भी देखता हूँ
उसमें तुझको ही देखता हूँ
ख़्यालों में तू आने लगी
मेरे ख़ाबों को सजाने लगी
जाने कब से ऐसा होने लगा
मेरा दिल तेरा होने लगा
ऐसा मुझको क्यों हो गया
मुझको तुमसे प्यार हो गया
अदाएँ तेरी जादू चलाने लगीं
मुझको सनम अपना बनाने लगीं
पत्तों की पायल खनकने लगी
तुझे छू के हवा महकने लगी
यक़ी तो मुझको आता नहीं
मैं तेरा दीवाना होने लगा
ऐसा मुझको क्यों हो गया
मुझको तुमसे प्यार हो गया
बहाने अजब बनाने लगा
तेरे क़रीब आने लगा
ऐसा मुझको क्यों हो गया
मुझको तुमसे प्यार हो गया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
2 replies on “ऐसा मुझको क्यों हो गया”
bahut khub,isa hi hota hai jab pyar naam ka jadu chalta hai.
bahut khub aisa hi hota hai jab pyar naam ka jadu chalta hai.