एक ख़ाब टाँक दो आँखों में
आज मैं ज़हर पी लूँ
एक पल की तो ज़िन्दगी नहीं
क्यों आज मैं जी लूँ
आज से पहले जितने पल जिये हैं
उनमें सदियों का इंतज़ार है
यह दिल कल भी बेक़रार था
यह आज भी बेक़रार है
जला-जला के दिल पीते हैं ग़म
मुझे ग़मों पे कब इख़्तियार है
यह मौत कल भी वजहसार थी
यह आज भी वजहसार है
एक ख़ाब टाँक दो आँखों में
आज मैं ज़हर पी लूँ
एक पल की तो ज़िन्दगी नहीं
क्यों आज मैं जी लूँ
जो तेरा नाम लेकर जीते होंगे
उनमें एक यह ख़ाकसार है
यह दिल कल भी किरायेदार था
यह आज भी किरायेदार है
एक ख़ाब टाँक दो आँखों में
आज मैं ज़हर पी लूँ
एक पल की तो ज़िन्दगी नहीं
क्यों आज मैं जी लूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२