मैंने आँखों को लहू का समन्दर
और दिल को दस्तो-सहरा बनाया
‘नज़र’ को अय्यार पेश सैय्याद
बता तुझको क्या सज़ा मुक़र्रर हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मैंने आँखों को लहू का समन्दर
और दिल को दस्तो-सहरा बनाया
‘नज़र’ को अय्यार पेश सैय्याद
बता तुझको क्या सज़ा मुक़र्रर हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३