Categories
मेरा गीत

आहिस्ता-आहिस्ता नज़दीकियाँ बढ़ने लगीं

आहिस्ता-आहिस्ता नज़दीकियाँ बढ़ने लगीं
आहिस्ता-आहिस्ता तुमसे राहें जुड़ने लगीं
आहिस्ता-आहिस्ता तुमसे प्यार हो गया
आहिस्ता-आहिस्ता दोनों निगाहें लड़ने लगीं

तुमसे कहना था संग तेरे जीना है मुझको
प्यार को तुम्हारी आँखों से पीना है मुझको
ज़िन्दगी क्या है तुमसे मिलके जाना मैंने
सिवा तुम्हारे दिल के’ चैन कहीं न है मुझको

वह पहली नज़र और वह दिलकश समाँ
वह हुस्नो-अदा और वह मौसम ख़ुशनुमा
बदला-बदला है सब कुछ आज भी यहाँ
यह दिल, यह धड़कन, यह नीला आसमाँ

तुमने दिल लेकर मेरा क्यों न अपना दिया
हाँ मेरी ज़िन्दगी को इक नया सपना दिया
तेरी चाहत सनम मेरी क़िस्मत बन गयी
जो आशिक़ तुमने मुझको अपना बना दिया


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

4 replies on “आहिस्ता-आहिस्ता नज़दीकियाँ बढ़ने लगीं”

Thanks for visiting my weblog and comments those you make with pure heart…

बहुत ही सुंदर रचना वधाई – किसी का एक शेर याद आगया है कहा है के =
जो तेरे नाम नही वो मेरी इवारत क्या ==तुझे न देख सकूं तो मेरी वसारत क्या /
उसे खरीद लिया ख़ुद को बेच कर हमने =इससे ज़्यादा बडी तिजारत क्या //

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *