आज टूटते बरसते रहे बादल,
मेरे आगँन के नीम की पत्तियाँ
बारिश के बाद भी बूँदें छिटकाती रहीं
मन, गीला मन भर आया
दिल में हर आह चिटकती रही
शाम फिर गुलाबी थी आज…
आस्माँ में वह चाँद नहीं था
एक नया सतरंगी धनुष था
उदास मन तेरी यादों से ख़ुश था…
मैं कहता किससे? कौन सुनता मेरी?
समेट के पाँव के निशाँ सारे
मैं अपने कमरे में लौट आया
मगर एक सदा तुम तक ज़रूर पहुँची होगी
धड़कनों में अजनबी एक हूक उठी होगी
शायद मेरा नाम याद आया हो तुम्हें
शायद कोई मंज़र हरा पाया हो, शायद…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३