आती-जाती रहती हैं यह सदियाँ
रास्ते पर रहती हैं मेरी दो अँखियाँ
तेरे इंतज़ार में तुझे देखने के लिए
जाने कब से तू आँखों में बसी है
जाने कब से यह महफ़िल सजी है
यूँ ही घर आना-जाना बढ़ गया
एक पल में तेरा नशा चढ़ गया
एक ही ख़ाब आँखों में बसाया है
तुमको हर जनम अपना बनाना हैं
मेरी हर दुआ है तुझे माँगने के लिए
जाने कब यह रिश्ता बंध गया
आँखों ही आँखों में मेरा दिल गया
बातों ही बातों में तुम लुभाने लगे
और तन्हाई के डर सताने लगे
आती-जाती रहती हैं यह सदियाँ
रास्ते पर रहती हैं मेरी दो अँखियाँ
तेरे इंतज़ार में तुझे देखने के लिए
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९