बड़े बेखु़द हैं हम आज कल
तू भी कभी अपने घर से निकल
ज़ख़्मो – दर्द बुझाते नहीं
तुझको ढूँढ़ते हैं दरअस्ल
पाँव जब भी निकले तेरी गली से
यह दिल धड़का न एक पल
तुझसे मिले यह आँसू यह आहें
किससे मिलें मसाइलों के हल
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’