बहुत पुराना है वह रिश्ता
जिसे गठरी में बाँधकर रखा है
मेहमान को बिठाया बाहर
घर को किराये पर दे रखा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
बहुत पुराना है वह रिश्ता
जिसे गठरी में बाँधकर रखा है
मेहमान को बिठाया बाहर
घर को किराये पर दे रखा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
5 replies on “बहुत पुराना है वह रिश्ता”
बहुत पुराना है वह रिश्ता
जिसे गठरी में बाँधकर रखा है
मेहमान को बिठाया बाहर
घर को किराये पर दे रखा है
bahut sunder
kya baat bahut accha likah hai
बहुत पुराना है वह रिश्ता
जिसे गठरी में बाँधकर रखा है
मेहमान को बिठाया बाहर
घर को किराये पर दे रखा है
‘wah, gjab kee soch or shabd sanyogen’
regards
मकरंद, नीशू, और सीमा जी आप सभी का धन्यवाद!
a deep thinking …………..
arsh