आज फिर मुझको खिड़की से
दिख रहा है चाँद आधा-आधा
जिस तरह से मैं जी रहा हूँ
वो भी कहीं जी रहा है आधा-आधा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
Rubaa’ieyaan
आज फिर मुझको खिड़की से
दिख रहा है चाँद आधा-आधा
जिस तरह से मैं जी रहा हूँ
वो भी कहीं जी रहा है आधा-आधा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
यह सावन मेरा मन पढ़-पढ़ रोया अबकि बार
यह गरज मुझे डराती रही तेरे तेवर की तरह
बदलना था तुम्हें तो मुझको तुमने बदला क्यों
हमने ग़म को पहना है दिल पे ज़ेवर की तरह
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मतलब से ही जनम लेता है कोई रिश्ता
मतलब से ही मिट जाता है वह रिश्ता
तख़लीक़ के इस भँवर में तकलीफ़ है बहुत
सँभलकर बुन जब भी बुन नया रिश्ता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
कैसी फ़रियाद, कैसा नाला
हम क़ैसो-फ़रहाद नहीं
हम हैं ख़ुदा से, ख़ुदा हमसे
सिवाय इसके कुछ याद नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘वफ़ा’
लेखन वर्ष: २००३
इश्क़ क्या हमको मारेगा, हम इश्क़ को मारेंगे
अब तलक क्या हारे हैं उससे, जो अब हारेंगे
जाओ कह दो शायरे-मुक़ाबिल से हम भी मैदाँ में हैं
वह क्या कहेगा शे’र, हम ज़बाने-लहू को तराशेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३