चाँद गवाह है मेरे प्यार का
क्या यही ख़्याल है, मेरे यार का
कुछ न ख़बर हुई उस पल की
कुछ न पता चला उस पल का
उसके चेहरे पर नज़र रुकी
क्या ख़बर क्या गया, क्या मिला
हर लम्हा इन्तज़ार नये ख़ाब का
क्या ऐसा ही हाल है मेरे यार का
जाने ना मिलें या न मिलें
उनसे हम कभी दोबारा
जाने फिर खिले या न खिले
वह गुलशन देखा हुआ नज़ारा
चाँद गवाह है मेरे प्यार का
क्या यही ख़्याल है, मेरे यार का
मैंने जिसे चाहा उसने मुझे चाहा
इस बात की ख़बर नहीं
बहती हवा भी मुँहज़ोर नहीं
तन में तपिश करती है चाँदनी
यह असर है पहले प्यार का
क्या ऐसा ही हाल है मेरे यार का
चाँद गवाह है मेरे प्यार का
क्या यही ख़्याल है, मेरे यार का
दिल में दर्द की आतिश जल रही है
तुम्हें पाने की चाहत बढ़ रही है
दिल मेरा बेताब है
जाने कहाँ दमका माहताब है
ऐसा रूप-रंग है मेरे यार का
रोशन कर दे दिल जाँनिसार का
चाँद गवाह है मेरे प्यार का
क्या यही ख़्याल है, मेरे यार का
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९