धीरे-धीरे प्यार होता है
होते-होते इक़रार होता है
जब हम भी हैं यहाँ तो
जब वह भी हैं यहाँ तो
जब हम भी हैं जवाँ तो
जब वह भी हैं जवाँ तो
भला प्यार कैसे न होगा,
इक़रार कैसे न होगा…
इस उमर में हर कोई
इसका जानकार होता है
धीरे-धीरे प्यार होता है
होते-होते इक़रार होता है
आमना-सामना यार होता है
निगाहें गुणा चार होता है
कभी तो वह हमसे कहेंगे
कभी वह बातें हमसे करेंगे
कभी बातों ही बातों में
हमारी जान पहचान होगी
कभी तो वह हसीना
हम पर मेहरबान होगी
इस उमर में हर कोई
इसका शिकार होता है
धीरे-धीरे प्यार होता है
होते-होते इक़रार होता है
वह बहुत हसीं है
हम क्या सभी कहते हैं
हम भी कम नहीं
यह भी वह जानते हैं
जब ऐसा हैं यारों
वह दूर कैसे रहेंगे
हमसे दिल की बात
कभी तो वह कहेंगे
इस उमर में हर किसी का
अपना दिलदार होता है
धीरे-धीरे प्यार होता है
होते-होते इक़रार होता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
One reply on “धीरे-धीरे प्यार होता है”
Excellent!
Bulandiya kadmo ko choome is dua ke sath
apaka
shishu