एक दोस्त मेरा भी हो
एक यार मेरा भी हो
जिसकी बाँहों में मुझे
मिल जाये ज़िन्दगी
जो झूठ-मूठ रूठ के
सताये, करे दिल्लगी
देखे हमने कई हसीं
लेकिन वह मिला नहीं
जो पहली नज़र में
दिल में उतर जाये
जो गहने उतारे गर
तो और सँवर जाये
दिल की दोस्ती के लिए
एक दोस्त मेरा भी हो
एक यार मेरा भी हो
ख़ुशबू हसीनों की मुझे
हमेशा बुलाती रही है
जो अभी देखी नहीं वह
शमअ, जलाती रही है
उसकी सादगी, नयी
सुबह दिखाती रही है
सदा मुस्कुराने के लिए
एक दोस्त मेरा भी हो
एक यार मेरा भी हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४