इल्तिहाबे-दर्द से जलता है कलेजा
कभी तेरी यादों को बिखराया कभी सहेजा
बयाँ दास्ताने-सोज़े-फ़ुगाँ किससे करूँ
सभी मेरे लफ़्ज़ देखते हैं न कि लहजा
सुकूनो-क़रारो-सबात से क्या मुझे
तू इस दिल के सौदे में मेरा सब कुछ ले जा
सदाए-राहे-मुहब्बत बुलाती है मुझको
दिमाग़ कुछ सोच के कहता है ठहर जा
गर्मिए-हौसले-जुनूँ का असर है यह
दिल करता है मुझपे नवाज़िशहाए-बेजा
अब तक न मेरे सलाम का कोई जवाब आया
तूने मुझको कोई ख़त भेजा कि न भेजा
ख़्याले-सुम्बुल से बीमार की बेक़रारी है
ऐ तबीब ‘नज़र’ को इसका इलाज दे जा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५