जाने क्या था आँखों में
शायद सावन की गहरी रात थी
क्यों पीछे मुड़के देखा था
क्या बतानी कोई बात थी
जो थी तो कहती क्यों नहीं
छुपाके दिल में रखी है कह दो
आँखों की भाषा मैं न जानूँ
किसी ख़त में लिखकर दे दो
रोज़-रोज़ मैं तुझको देखता हूँ
कुछ बात है तो सही तुझमें
मैं क्यों चाहूँ तेरे पास आना
डरता हूँ कुछ ऐसा न हो जाये
कुछ वैसा न हो जाये कि मैं
बना भी न पाऊँ कोई बहाना
जाने क्या था आँखों में
शायद सावन की गहरी रात थी
क्यों पीछे मुड़के देखा था
क्या बतानी कोई बात थी
तेरी ही ख़्याली रहती है
तेरे ही ख़ाब आयें रातों में
तेरे ही हुस्न की तारीफ़
करता हूँ यारों से बातों में
जाने क्या था आँखों में
शायद सावन की गहरी रात थी
क्यों पीछे मुड़के देखा था
क्या बतानी कोई बात थी
कुछ था तो सही आँखों में
जाने क्या था आँखों में
शायद कोई नीला ख़ाब था
जिसे बयाँ करतीं तुम बातों में
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२