जब आसमाँ पे यह हिलाल आया
मुझे याद तुमसे विसाल आया
जिस शब तारों की बारात आयी
मुझे तुम्हारा ही ख़्याल आया
हमने कितने सवाब हैं कमाये
जो मेरे हिस्से यह जमाल आया
नाज़ करना ख़ुद पे फ़ितरत है
उम्र पे यह कैसा साल आया
है तेरे इश्क़ को रस्मो-राह
उफ़! निगाह में कैसा गुलाल आया
तुझे देखने के बाद ‘नज़र’ का
शुरुआती दौरे-वबाल आया
हिलाल= दूज का चाँद, सवाब= पुण्य, जमाल= सुन्दरता, दौरे-वबाल= कठिन समय
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३