जब कभी मैंने साँस ली
साथ तेरे नाम की फाँस ली
पहरों नाराज़ थे ख़ुद से
आज गुज़रे हैं हद से
बेताब हैं तेरे प्यार में
फिर जायें कैसे ज़िद से
जब कभी मैंने साँस ली…
शहद जैसी शाम घुल गयी
हमको ज़िन्दगी मिल गयी
मोगरे के फूल जब खिले
उनमें तेरी हँसी मिल गयी
जब कभी मैंने साँस ली…
आँखों में तेरे ख़ाबों की रिदा है
धड़कनों की तुझको सदा है
छम-छम छनकेगी ख़ुशी
महकी-महकी तेरे अदा है
जब कभी मैंने साँस ली…
मोगरा: Jasmine Sambac Florapleno, रिदा: coversheet
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
One reply on “जब कभी मैंने साँस ली”
good