जिसे दवा जाना वह ज़हर निकला
वह कि मेरा क़फ़न उड़ाकर निकला
दो उंगलियों में मुझे यूँ मसला उसने
मेरे दिल से फ़िराक़ का डर निकला
जिस दिल को मैंने समन्दर जाना
वह तो एक टूटी हुई लहर निकला
तुम्हारे प्यार में जो मैंने गुज़ारा
वह लम्हा कितना मुख़्तसर निकला
फ़िराक़= बिछोह, separation
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
One reply on “जिसे दवा जाना वह भी ज़हर निकला”
bahut hi sundar ghazal…