काश वह कोई गुल होती
मैं उसे अपने लबों से चूम लेता
गर वह कोई आइना होती
मैं ख़ुद को उसमें उतार देता
इश्क़ जला है कितनी रातों तक
कोई समझता दर्द मैं बता देता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
काश वह कोई गुल होती
मैं उसे अपने लबों से चूम लेता
गर वह कोई आइना होती
मैं ख़ुद को उसमें उतार देता
इश्क़ जला है कितनी रातों तक
कोई समझता दर्द मैं बता देता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१