कभी यूँ भी होता है ज़िन्दगी मिलती है खो जाती है
यह शाम उसकी यादों में मुझको डुबो जाती है
नहीं यह मुमकिन वह मिल जाये जिसे तुम चाहो
यह मोहब्बत चंद लोगों के दामन भिगो जाती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ११ अगस्त २००४
कभी यूँ भी होता है ज़िन्दगी मिलती है खो जाती है
यह शाम उसकी यादों में मुझको डुबो जाती है
नहीं यह मुमकिन वह मिल जाये जिसे तुम चाहो
यह मोहब्बत चंद लोगों के दामन भिगो जाती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ११ अगस्त २००४
2 replies on “कभी यूँ भी होता है”
kya baat hai, wah khub!
thanks for compliment!