ख़राश ज़ख़्म बनेगी, घाव करेगी
और मवाद के दरिये बहेंगे
हमने हमेशा ‘वफ़ा’ से लाग रखा
एक दिन सबके नज़रिये कहेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘वफ़ा’
लेखन वर्ष: २००३
ख़राश ज़ख़्म बनेगी, घाव करेगी
और मवाद के दरिये बहेंगे
हमने हमेशा ‘वफ़ा’ से लाग रखा
एक दिन सबके नज़रिये कहेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘वफ़ा’
लेखन वर्ष: २००३
One reply on “ख़राश ज़ख़्म बनेगी, घाव करेगी”
sahab ham to aapke kaayal ho gaye…