खिली-खिली महकी बहारें हैं
झीलों पर बहते शिकारें हैं
ठण्डी-ठण्डी सौंधी हवाएँ हैं
गीले पत्तों को खनकाएँ हैं
जाने कैसी तलब जागी है
जाने किसका इन्तिज़ार है
बेज़ार-सा यह दिल मेरा
किसके लिए गुलज़ार है
आज ऐसा क्यों लग रहा है
नये-नये सब नज़ारें हैं
खिली-खिली महकी बहारें हैं
झीलों पर बहते शिकारें हैं
शबनमी रातों का यह चाँद
और उजली-उजली चाँदनी
आइनाए-दिल में कौन यार है
इश्क़ जिससे वजहसार है
बंजर ज़मीने-दिल से आज
उलझे हुए मखमली धारे हैं
खिली-खिली महकी बहारें हैं
झीलों पर बहते शिकारें हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
4 replies on “खिली-खिली महकी बहारें हैं”
शबनमी रातों का यह चाँद
और उजली-उजली चाँदनी
आइनाए-दिल में कौन यार है
इश्क़ जिससे वजहसार है
shandar lines,beautiful
‘simtee simtee see ratoon mey,
bhege bhege se fuaareyn hain,
behke behke se hr lmhon mey,
taire aaney ke jhunkareyn hain…”
” very beautifully composed, seems like a love song, good one”
Thanks, Mehek & gr8 seema ji! beautiful lines…
Sulagti raton ko aise seencha hai
Roz kehta hoon ke tumse pyaar hai
Mere maazi ka tabassum aakhir
Aur kiske liye gulzaar hai?
Very interesting lines….