ख़िज़ाँ मुस्कुराने लगी
सूखे पत्ते उड़ाने लगी
दरख़्त की शाख़ों पर
धूप की बूँदें नहीं
सूरज का दरिया है
छोटी-छोटी
नन्हीं मासूम बेलें
शाख़ों से खुलकर
तड़फड़ाने लगीं…
ख़िज़ाँ मुस्कुराने लगी
सूखे पत्ते उड़ाने लगी
पाँव सूखे थे
ज़मीं ने सोख लिये
मुड़के देखा तो
निशाँ कहीं न थे
रात आयी तो
चाँद बरसने लगा
सहर फिर मुझे
आज़माने लगी
ख़िज़ाँ मुस्कुराने लगी
सूखे पत्ते उड़ाने लगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २५ अप्रैल २००३