शीतल जल में चंदन घुला हो
ऐसी थी काया
काले-काले बादलों से घनी थी
ज़ुल्फ़ों की छाया
क्यों जचने लगी यह बेख़ुदी
कैसी है माया
माया यह तेरी कैसी माया है
हर तरफ़ तेरा जादू छाया है
जाने कैसा मौसम आया है
दिल ने जाने क्या पाया है
दिल में तुझको ही बसाया है
नसों में तेरा इश्क़ समाया है
ऐसे कोई छोड़ के जाता है
यारों को रुलाता है
कभी-कभी ऐसा हो जाता है
कोई रह जाता है
जो सपनों में रोज़ बुलाता है
वादों को निभाता है
इन राहों पर जब आती है
इस दिल में तू समाती है
ऐसे क्यों हुस्न दिखाती है
ऐसे क्यों उन्स उठाती है
काहे को नज़रें झुकाती है
कहाँ दिल को ले जाती है
माया यह तेरी कैसी माया है
हर तरफ़ तेरा जादू छाया है
जाने कैसा मौसम आया है
दिल ने जाने क्या पाया है
दिल में तुझको ही बसाया है
नसों में तेरा इश्क़ समाया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९