मैं ग़लत हूँ तू सही है
बात समझी जो मैंने कही है
अफ़साना झूठा हुआ तो क्या
दिल का इरादा तो सही है
सौदे किये ज़ियाँ उठाया
नफ़े की उम्मीद तो रही है
न नहीं किया किसी बात को
जी-हुज़ूरी में भी बुराई है
आँसू आँख की ज़ीनत नहीं
इनके लिए रूख़े-यार ही है
कौन समझाये न हो उदास
तरीक़ा जीने को यही है
जिसने की जफ़ा दिल पर
गुनाहगार सच्चा वही है
फ़ितरत से फिरा कौन यहाँ
जो जैसा भी है सही है
चाँद गुलाबी हो आज फिर
हसरते-दिल तो यही है
जाने-वज़ा है मेरा क़ातिल
नूरे – रुख़सत वही है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३